बिलासपुर
ब्यूरो
बिलासपुर-कोरोना लॉक डाउन और धारा 144 तोड़कर भीड़ इकट्ठा करने का आरोप लगाते हुए बिलासपुर विधायक शैलेष पांडेय के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कर लिया गया है।इसके कारण सड़कों पर छाई वीरानी के बीच राजनीतिक गलियारे में चर्चा शुरू हो गयी है।लेकिन इस कार्यवाही से पुलिस और प्रशासन ने अपनी ही व्यवस्था के ऊपर ही प्रश्न चिन्ह लगा लिया है।

बिलासपुर विधायक के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कर पुलिस और प्रशासन ने स्वयम अपनी व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया है।विधायक पर आरोप है कि उन्होंने अपने सरकारी निवास में लोगो की भीड़ इकट्ठा कर धारा 144 और लॉक डाउन के नियमो का उल्लंघन किया है।उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 188 के तहत मामला दर्ज किया है।अब यह मामला पुलिस ने स्वयमेव दर्ज किया है या किसी के कहने पर यह तो वही जाने।मगर ऐसा कर पुलिस ने स्वयं अपने और अपनी व्यवस्था के ऊपर सवाल खड़े कर लिए है।शायद किसी को राजनीतिक लाभ पहुंचाने के चक्कर मे पुलिस ने अपनी ही छवि धूमिल कर ली है। क्योंकि जब पुलिस ने मामला भीड़ इकट्ठा करने का दर्ज किया है तो उसे यह भी बताना पड़ेगा कि इतनी संख्या में लोग आखिर शहर के ऐन मध्य में स्थित विधायक बंगले पर पहुंच कैसे गए? जाहिर है वे पैराशूट से तो उतरे नही होंगे जैसा कि शहर के दूसरे नेता विधायक शैलेष पांडेय के बारे में राय रखते है। निश्चित ही वे कहीं न कहीं से चलकर ही आये होंगे। और जब चलकर आये है तो शहर में बाहर निकलने वालो और पेट्रोल पंप कर्मचारियों की पीठ लाल कर देने वाली पुलिस के जवानों की आंखों पर कौन सी पट्टी बंधी थी? जो इतने लोगो को विधायक निवास तक पहुंचने दिया गया।क्या वे उन्हें सड़क पर दिखाई नही दिए ?क्या उस समय पुलिस के जवान और अधिकारी दिन रात की थकान मिटा रहे थे?अब यदि भीड़ इकट्ठा करने के लिए विधायक को दोषी बताया जा रहा है।तो ऐसा होने देने के लिए पुलिस के जवान और अधिकरी भी उतने ही जिम्मेदार हुए ।लॉक डाउन में जितनी जिम्मेदारी एक आम जनता और नेता की होती है उससे कहीं ज्यादा पुलिस और प्रशासन की होती है।कहीं पर भीड़ एकत्रित नही होने देने की जवाबदारी इन्ही के ऊपर होती है।अब यदि लोग किसी के दरवाजे पर जाकर इकट्ठे हो जाये ।तो इसमें घर मे रहने वालों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करना कहाँ का न्याय है?एफआईआर दर्ज करने के पहले यह तो जांच होनी ही चाहिए कि भीड़ घर वाले ने लगाया है या घर मे रहने वाले के द्वारा किये जा रहे सहायता को सुनकर सहायता की आस में लोग खुद ही चले आये।या किसी ने षड्यंत्र कर भीड़ को वहां भेजा हो जो विधायक द्वारा लोगों की, की जा रही सेवा और उनकी बढ़ती लोकप्रियता को सहन नही कर पा रहे हों। यह तो उन परिस्थितियों में और भी आवश्यक हो जाता है जब पुलिस के आला अधिकारियों को बुलाकर स्वयं विधायक ही लोगो को घर जाने और उनके लिए घर पहुंच सहायता दिए जाने की बात पुलिस वाहन के माध्यम से कर रहे हों।

दरअसल लॉक डाउन की वजह से शहरी गरीब जनता को परेशानी न हो इसे ध्यान में रखते और एक विधायक होने के नाते शैलेष पांडेय ने अपने कार्यकर्ताओं और पार्षदों के माध्यम से सहायता पहुंचाना शुरू किया था।इससे उनकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी।क्योंकि अन्य किसी नेता को इतना सक्रिय नही देखा गया।विधायक की यही बढ़ती लोकप्रियता और जिम्मेदार व्यक्तित्व शायद शहर के कुछ लोगों को रास नही आ रहा था।और लगातार उपेक्षित किये जाने के बाद भी शैलेष पांडेय की जुझारु प्रकृति को पीछे से तोड़ने का एक और प्रयास है।लेकिन दूसरे की बंदूक को कंधा देने के चक्कर मे बिलासपुर पुलिस ने अपने ही दामन को छलनी कर लिया है।लोग तो सवाल पूछेंगे ही कि जब एक विधायक के घर को आप सुरक्षित नही रख पाए वहां भीड़ इकट्ठा होने दिया तो ।शहर के अन्य स्थानों पर आप चौकसी कैसे कर रहे होंगे?जब शहर विधायक के घर के लिए लोग चलकर विधायक निवास की ओर आ रहे थे तो सडको पंर खड़ी पुलिस क्या कर रही थी?पुलिस के आला अधिकारी इसका क्या जवाब देंगे? यह सवाल आम जन प्रत्यक्ष रूप से शायद न कर पाए मगर कोर्ट में इनका जवाब देना पुलिस के लिये कठीन ही रहेगा।
इस बीच विधायक शैलेष पांडेय ने इस एफआईआर को साजिश बताते हुए कानूनी सहायता लेने के साथ विशेषाधिकार हनन की बात भी कही है।उन्होंने कहा है कि मुझे नही पता कि इस पटकथा के पीछे किसका हाथ है।मगर मैं सभी नियमो।का पालन करते हुए अपनी जनता के प्रति जवाबदेही पूरा करता रहूँगा ।और इस एफआईआर के विरुद्ध कानूनी सहायता लूँगा।