बिलासपुर
ब्यूरो- जांजगीर चांपा के पूर्व कलेक्टर जनक प्रसाद पाठक को हाइकोर्ट से बलात्कार के मामले में अग्रिम जमानत मिल गयी है।हाइकोर्ट के माननीय जज ने जमानत मंजूर करते हुए कहा की एफआईआर देर से कराया जाना, और महिला द्वारा घटना के बाद अपने पति के किसी भी प्रकार की चर्चा न करना,कहीं और शिकायत नही करना,एफआईआर को संदेहास्पद बनाता है।साथ ही मामला ही संदेहास्पद होने पर एट्रोसिटी एक्ट के मामला नही बनना भी बताया।

जांजगीर-चांपा के पूर्व कलेक्टर जनक प्रसाद पाठक को हाइकोर्ट से बलात्कार मामले में बड़ी राहत मिली है।हाइकोर्ट ने न केवल उनकी अग्रिम जमानत मंजूर की है वरन एफआईआर पर सीधा-सीधा सवाल खड़ा करते हुए मामले को संदेहास्पद बताया है।माननीय न्यायालय ने कहा है किदोनो पक्षो को सुनने और एफआईआर के तथ्यों और प्रस्तुत साक्ष्यों से लगता है कि मामला संदेहास्पद है । घटना दिनाँक 15 मई के तुरंत बाद पीड़िता द्वारा घटना की जानकारी अपने पति को नही देना, कही शिकायत नही करना और एफआईआर देर से दर्ज कराना मामले को संदेहास्पद बनाता है।साथ ही एफआईआर से स्पष्ठ है कि जो भी हुआ उसके लिए पीड़िता की सहमति थी। एफआई आर में देरी के कारणों को स्पष्ट नही किया गया है, इसलिए मामला संदेहपूर्ण है।जब मामला ही संदेह पूर्ण है तो एट्रोसिटी का मामला भी नही बनता है।अतः आवेदक को अग्रिम जमानत मंजूर किया जाता है।
यह है मामला
ज्ञातव्य है कि जांजगीर चांपा के पूर्व कलेक्टर जनक प्रसाद पाठक पर एक महिला द्वारा एफआईआर दर्ज कराया गया था।एफआईआर में बताया गया था कि तत्कालीन कलेक्टर ने 15 मई को अपने चैम्बर में उसके साथ जबरदस्ती की थी।उसके बाद बार बार व्हाट्सएप्प मैसेज भी करते रहे।26 मई को उनके ट्रांसफर हो जाने के बाद 3 जून को एफआईआर दर्ज कराया गया ।इसके बाद सरकार ने पाठक को निलंबित कर दिया था।
पुलिस पहुंची कटघरे में
हाइकोर्ट की टिप्पणियों और मामला दर्ज करने में कई गयी जल्दबाजी से जांजगीर पुलिस की कार्यवाही पंर सवालिया निगाहें उठा रही है।किसी वरिष्ठ और बड़े अधिकारी के विरुध्द बिना जांच कार्यवाही के सीधे सीधे एफआईआर दर्ज कर लेने से पुलिस ने स्वयम को कटघरे में खड़े कर लिया है।अब उंगलियां पुलिस की कार्यवाही पर उठ रही है।