बिलासपुर
ब्यूरो-
तख़तपुर जनपद क्षेत्र के ग्राम मेड़पार बाजार में 45 मवेशियों के मरने की खबर से प्रशासन सकते में आ गयी है।मवेशियों के मरने का कारण क्षमता से अधिक मवेशियों को एक ही कमरे में बंद कर देना है।प्रशासन ने इसकी जांच कराकर दोषियों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही किये जाने की बात कही है।अतिरिक्त कलेक्टर की अध्यक्षता में एक जांच टीम गठित कर दी गयी है।वही हिर्री थाने में अज्ञात लोगों के विरुद्ध पशु क्रूरता अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध दर्ज कर लिया गया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार तख़तपुर जनपद के ग्राम पंचायत मेड़पार बाजार में बीती रात 44 मवेशियों की मौत हो गयी है।इतनी अधिक संख्या में एक साथ मारने का कारण उन्हें एक छोटे कमरे में क्षमता से अधिक संख्या में भरे जाने से दम घुटना बताया जा रहा है।ग्रामीणों और अन्य स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्राम सरपंच और अन्य नागरिकों ने कृषि का समय होने के कारण दो दिन पूर्व गाँव में मुनादी कराई थी कि सभी गौ पालक अपने मवेशी घर मे बांध कर रखे।लेकिन गाँव वालो ने अपने मवेशी खुला ही छोड़ दिया था।खेतो में लगे फसल को नुकसान से बचाने के लिए गाँव मे खुले घूम रहे सभी मवेशियों को पुराने ग्राम पंचायत भवन में बंद कर दिया गया।लेकिन इस बात का ध्यान नही रखा गया कि एक छोटे से कमरे 70 से 75 मवेशी कैसे आ सकते है।यही चूक मवेशियों के लिए जान लेवा साबित हुआ और कमरे में घुसाए गए मवेशियों में से कुछ जिंदा बचे तो वही 44 मवेशियों की मौत हो गयी।इनमे दूध देने वाली गाये,बछड़े, बैल सभी शामिल है।प्रशासन ने अज्ञात लोगों के विरुद्ध पशु क्रूरता अधिनियम की धारा 13 और आईपीसी की धारा 429 के तहत हिर्री थाने में अपराध दर्ज कर लिया गया है।साथ ही अतिरिक्त कलेक्टर की अध्यक्षता में जाँच कमेटी गठित कर दी गयी है।

कैसे पता चला
शाम को पुराने पंचायत भवन में मवेशियों को बंद कर दिए जाने के कारण जब वे रात में अपने घर नही पहुंची ।सुबह जिन गाय मालिको की गाय दूध देती थी वे उन्हें ढूँढने निकले तो बताया गया कि गाय पंचायत भवन में बन्द है।जब पंचायत भवन में जाकर देखा गया तो गायें मर चुकी थी।इसके बाद गाँव के हल्ला मच गया और बात अधिकारियों तथा मीडिया तक पहुंच गई

किसने क्या कहा
रश्मि सिंह विधायक तख़तपुर संसदीय सचिव
यहां गौठान और कांजी हाउस दोनो नही है इसलिए ग्रामीणों ने स्थानीय स्तर पर व्यवस्था बनाकर पुरानी पंचायत भवन में गायों को रखा गया था । अधिक संख्या में होने के कारण गायें सुबह मृत पाई गयी।बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और निन्दनीय है।जांच के बाद जो भी दोषी मिलेंगे उनको कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी। और इस घटना का रोका छेका और गौठान से कोई संबंध नही है।यह ग्रामवासियों की अपनी वैकल्पिक व्यवस्था थी।

हर्षिता पाण्डेय भाजपा नेता
पूरी घटना पर बड़ा शोक प्रकट करती हूँ।रोका छेका की जा रही गौठान बनाये जा रहे मगर बजट का पता नही ।गाइड लाइन जारी नहीं किये गए।निचले स्तर पर ग्रामीणों को जिम्मेदार बताकर शासन अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहती है।जांच के नाम पर जिम्मेदार लोगों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है।
गजेंद्र सिंह ठाकुर जिला पंचायत सीईओ
ग्रामीणों से बात करने पर पता चला है ।यहां गौठान की योजना नही है।इसलिए ग्रामीणोंने वैकल्पिक व्यवस्था में जानवरों को पुराने पंचायत भवन में डाला था।किसकी गलती है यह जांच का विषय है ।जांच के बाद ही पता चल पाएगा।
पहले भी करते थे गायों को यहां बन्द
गाँव में कांजी हाउस और गौठान किसी भी प्रकार की व्यवस्था नही होने के कारण पुराने पंचायत भवन को ही कांजी हाउस की तरह उपयोग किया जाता था।यहाँ एक बार मे 8-10 गायों को रखा जाता था और उनकेन्चारे की व्यवस्था भी की जाती थी।मगर अबकी बार एक साथ 70 से 75 गायों को रखा गया,जो भवन की क्षमता से कई गुना है।इसी वजह से दम घुटने से गायें मर गयी।

ग्रामीणों का कहना है
मनोज लहरे का कहना है
हमारे गाँव मे इस तरह की कोई सहमति नही बनी थी कि गायों को कमरे में बंद कर दिया जाए।यह सब सरपंच के पति और उनके साथियों द्वारा मनमर्जी से किया गया है।उन्ही के कारण इतनी बड़ी घटना हुई है।
विनोद घृतलहरे ने कहा कि
सरपंच पति ने सीईओ के आदेश का हवाला देकर सारा काम किया है।और घटना के बाद ग्रामीणों को बहलाकर कर सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करा रहे है।ग्रामीणों को समझना चाहिए कि उनके इस कदम से जिम्मेदार तो बच जाएंगे मगर सहमति देने वाले फंस जाएंगे।
सभी गायें गाँव की ही है
गाँव वालों से बात करने पर पता चला कि जितनी भी गायें मरी है।वे सब गाँव वालो की ही है।और दिन ढलने के बाद अपने घर चली जाती थी मगर कल उन्हें पंचायत भवन में बन्द कर दिए जाने से वे घर नही जा पाई।कुछ ग्रामीण रात में ढूढते हुए आये तो उन्हें गाये नही दी गयी। तो गाँव वाले भी सुबह ले जाने की बात कर चले गये।उन्हें क्या पता था कि इतनी गाये एक साथ ठूस दी गयी है।
वरांडा की गायें बच गई
जिस पुराने पंचायत भवन में गायों को रखा गया था वह जर्जर हो गया है।उसमें एक वरांडा और एक कमरा है।कमरे का साइज लगभग 22 बाई 14 का है। जब गायों के अंदर लाया गया तो 50 से 60 गाये अंदर कमरे में चली गयीऔर 10 से 15 गाये वरांडे में रह गयी। रात मे जब गर्मी और घुटन हुई तो वरांडे की गायें बाहर निकल गयी।मगर कमरे के अंदर घुसी गायों के तड़पडाने से कमरे का दरवाजा बंद हो गया और गायें बाहर निकल नहीं पायी।इससे दम घुटने की वजह से उनकी मौत हो गयी।

बजरंग दल ,गौ सेवको तथा ग्रामीणों के बीच हुई झड़प
गायों की इतनी बड़ी संख्या में मौत की खबर सुनकर क्षेत्रीय नेताओ और अधिकारियों के साथ बजरंग दल के सदस्य और गौ सेवक भी पहुंचे हुए थे।जो गायों के शव को एफआईआर के बाद ही उठाने देने की बात कहते हुए ट्रेक्टर में चढ़ गए इससे ग्रामीण आक्रोशित हो गए और गायों के शव शीघ्र अति शीघ्र ठीकाने लगाने की बात कहने लगे ताकि गाँव में किसी प्रकार की कोई महामारी न फैले और नुकसान न हो।इस बात को लेकर दोनों पक्ष आमने सामने हो गए मगर प्रशासनिक हस्तक्षेप और ग्रामीणों के आक्रोश को देखते हुए बजरंग दल के नेता और गौ सेवक ट्रेक्टर से उतर गए ।
बगल की दीवार तोड़कर निकाली गायों के शव
सामने से गायों के हड़बड़ाने से दरवाजा बंद हो जाने और अंदर गर्मी और गैस की वजह से की भी अंदर नही जा सका तो भवन के बगल की दीवार को तोड़कर गायों के शव निकाले गए।
तीन बछिया रही भाग्यशाली
कमरे के अंदर बन्द गायों में तीन बछिया की किस्मत बुलंद थी।जो इतनी बड़ी त्रासदी में भी जिंदा बच गयी।जब उन्हें निकाला गे तो अधमरी थी ।मगर बाहर निकले जाने और उपचार के बाद ठीक हो गयी।