बिलासपुर
राकेश मिश्रा
तोरवा क्षेत्र में 18 मार्च को खुदकुशी करने वाले विद्यार्थी के मामले में सनसनी खेज खुलासा हुआ है।विद्यार्थी ने अपने विशिष्ट शैली में लिखे अंतिम नोट में इसका खुलासा किया है कि वह अपनी एक टीचर के कारण ही आत्महत्या कर रहा है।टीचर उसका शारीरिक और मानसिक शोषण कर रही थी।
तोरवा क्षेत्र में एक स्कूली छात्र और टीचर के बीच अंतरंग संबंध की परिणति छात्र के खुदकुशी के रूप में सामने आया है।दरअसल 18 मार्च को 16 वर्षीय स्कूली छात्र ने शेड्यूल कर वीडियो बनाकर फांसी लगा ली थी उस समय उसकी माँ घर से बाहर गयी थी।आत्महत्या करने से पहले उसने एक विशेष एप्प की मदद से अंतिम पत्र लिखा था ,जिसमे उसने बताया है कि उसके स्कूल की एक महिला शिक्षिका ने उसके फायदा उठाया है और उसके साथ धोखा किया है।साइफर एप्प के जरिये लिखे उसके अन्तिम पत्र को पुलिस ने साइबर सेल की मदद से डिकोड कर लिया है।साइफर एप्प में अंग्रेजी के अक्षरों को बदलकर लिखता है जो सामान्यतया समझ मे नही आता है।लेकिन पुलिस ने इसे डिकोड कर लिया है।पुलिस ने महिला शिक्षिका को हिरासत में ले लिया है।
छात्र ने मरने से पहले महिला टीचर के लिए लिखा था जो इस प्रकार है
“पहले उसने(मैडम) प्यार में फंसाया,जब मुझे गहराई से प्यार हो गया तो मुझे छोड़ने की बात करती थी।मैं मनाता था तो मान जाती थी।जब कोई बड़ा काम कर देता था तो वह बदल जाती थी।उसे मेरा इस्तेमाल करना था।उधर सर के साथ इधर मेरे साथ।अच्छे से पूरा उपयोग करो ,मानसिक और शारीरिक शोषण करो।पता था मैं बेस्ट हूँ ,फिर भी उसने जिंदगी बर्बाद कर दी।मैं कभी माफ़ करने वाला नही हूँ।सबसे माफ़ी मांगे वो,अपने कर्म से नही बच पायेगी।
वह छोटी छोटी चीजों के लिए ब्लॉक कर देती थी और आवश्यकता पड़ने पर अनब्लॉक कर देती थी। तब मैंने उसे पूछा था कि ज़िन्दगी में कैसे ब्लॉक करोगी?लेकिन उसने ऐसा कर दिया।अब अनब्लॉक का कोई विकल्प ही नही है।मैंने एक बार उससे मज़ाक में पूछा था कि कोई और मिल गया है क्या?तो उसने कहा था, मेरा एक साथ 10 के साथ चक्कर चल सकता है क्या?फिर कहा कि कभी शक़ मत करना।
मैंने पहले भी उसके कारण आत्महत्या का प्रयास किया था,लेकिन उसे कोई फर्क नही पड़ा।मैं मरना नही चाहता था।उसे सब कुछ दे दिया,जो नही दिया उसने चुरा लिया।मैंने खुद को खो दिया।मैं हर दिन कष्ट में नही राह सकता ।मैं यह भी नही देख सकता कि वह अन्य लोगो के जीवन को खराब कर दे।अब आप सबको मेरा बदला लेना है।मेरी मौत व्यर्थ नही जायेगी।मैं आप लोगो को एक सुसाइड नोट का पीडीएफ भेजूंगा, जो निश्चित रूप से पासवर्ड से बंद होगा।उसका जीवन नरक बन जाये।”
नैतिक और सदाचारी विद्यार्थी ही विद्यालय का असली श्रम👇👇
आज के बढ़ते आधुनिक विचारधारा के कारण हमारा सामाजिक नैतिक पतन हो रहा है।हमारे समाज मे अब गुरु शिष्य परंपरा का भाव विलुप्ति के कगार पर है।इसका कारण आधुनिक शिक्षा प्रणाली से नैतिक शिक्षा और सदाचार के ज्ञान का लगभग हटा दिया जाना है ।आज विद्यार्थियों को वही शिक्षक ज्यादा अच्छे लगते है ,जो उनके साथ वैसी ही मस्ती और फूहड़ता करे जैसा कि विद्यार्थी चाहते है।विद्यार्थियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले और सदाचार की शिक्षा देने वाले शिक्षक और स्कूल हाशिये पर डाल दिये जाते है।आज के विद्यार्थियों को उन्मुक्तता ,स्वेच्छाचारिता चाहिए।नैतिकता का बंधन उन्हें मान्य नही है और वे ऐसी बातें करने वाले लोगों को दकियानूसी विचारों वाले समझ उनसे दूर ही रहना पसंद करते है।पालक भी अपने बच्चों को ऐसे विद्यालय में पढ़ाना पसंद करते है,जहाँ शिक्षा और सदाचार से ज्यादा दिखावा होता है।उनके लिए शिक्षा से ज्यादा दिखावटी वातावरण महत्व रखनें लगा है।विद्यार्थियों के नैतिक शिक्षा के लिए सबसे बड़ी जवाबदारी पालको की बनती है कि विद्यालय का चयन करते समय इन बातों का ध्यान रखें कि उस विद्यालय के विद्यार्थी नंबरो में कैसे भी रहें,लेकिन उनके व्यहार और विचार में शालीनता और नैतिकता कितनी है?केवल अंको के पीछे भागकर कर कुछ लाभ नहीं होगा ।अंक तो विद्यार्थी के अपने परिश्र्म का परिणाम होता है।लेकिन विद्यार्थियों के अंदर आचार विचार में शालीनता और नैतिकता विद्यालय और शिक्षक की मेहनत से ही आ सकता है।
बदलते परिवेश में पालक और शिक्षक भी एक समय तक ही बच्चों पर नियंत्रण रख सकते है।उसके बाद पालक की मर्जी बच्चों पर नही बच्चों की मर्जी पालको पर चलने लगती है।लेकिन यदि पालक और शिक्षक सही समय पर बच्चों को नैतिकता और सदाचार का पाठ पढ़ा दें,तो बच्चों पर न तो कड़े नियंत्रण की आवश्यकता होगी और न ही बच्चों की मर्जी पालको और शिक्षकों पर चलेगी।लेकिन हमारा ध्यान परीक्षा में विद्यार्थियों के अच्छे अंक लाने पर ही केंद्रित रहता है। इसके लिए विद्यालय के अलावा ट्यूशन क्लासेस की भी व्यवस्था करते हैं। लेकिन इन सबके बीच हम विद्यार्थियों के अंदर हो रहे नैतिक पतन को नजरअंदाज कर देते हैं या फिर कभी उस पर ध्यान ही नहीं देते ,और यदि ध्यान दिया भी तो इसे आधुनिकता का व्यवहार समझकर अपना लेते हैं। लेकिन यही आगे जाकर विद्यार्थियों के अंदर नैतिकता और सदाचार को समाप्त कर देता है । आवश्यकता यह है कि बच्चों को नैतिकता का पाठ उनकी समझ विकसित होने के पहले से ही पढ़ाया जाना चाहिए। वस्तुतः होता यह है कि हम विद्यार्थियों को नैतिकता का पाठ तब पढ़ाना शुरू करते हैं जब उसकी खुद की सा समझ विकसित हो चुकी होती है ऐसे में वह नए आचार विचार को अपनाने और उसके अपने आचार विचार के द्वंद के बीच फंस जाता है । इन सबके बीच पर कई बार सही निर्णय ले पाता हैै किंतु अधिकतर मामलों में विद्यार्थी अपने मूल से भटक कर उग्र स्वभाव के हो जाते हैं जो पालको और शिक्षको के लिए उचित नहीं होता है। इसकी परिणति बिलासपुर में हुई घटना के रूप में सामने आती है ,जहां एक शिक्षिका खुद नैतिक रूप से गिरकर विद्यार्थी का शोषण करती है और विद्यार्थी मानसिक और शारीरिक रूप से शोषित होने के बाद मौत को गले लगा लेता है।
यह घटना भी इसी नैतिक पतन का एक उदाहरण है।जहाँ एक शिक्षिका जिसके ऊपर न केवल विद्यार्थी का भविष्य संवारने का दायित्व होता है वरन समाज में नैतिकता और सदाचार को पुष्ट करने का भी उत्तरदायित्व है।अपने विद्यार्थी का न केवल शारीरिक और मानसिक शोषण करती है बल्कि इस स्थिति में ले आती है कि उसे जीवन से ज्यादा मौत सही दिखाई देता है।वह टीचर को सबक सिखाने के लिए अपने जीवन को दांव पर लगा देता है।यह मामला इतना सीधा नही है,जितना दिखाई दे रहा है।विद्यार्थी के इस कठोर कदम के पीछे वह शिक्षिका तो प्रमुखतः दोषी है ही ।इन दोनों के सम्बंध के विषय में जानकर भी इसे न रोकने वाले भी कही न कहीं उसकी मौत के लिए उत्तरदायी है। चाहे वह स्टाफ के अन्य शिक्षक शिक्षिकाएं हो या फिर विद्यार्थी के साथ पढ़ने वाले सहपाठी।समाज कों पतन की ओर ले जाने वाले ऐसे हर संबंधों को बनने से पहले तोड़ने दायित्व हम सबका है।