बिलासपुर
राजीव दुबे
ईश्वर न संकल्प हैं, न विकल्प हैं, वह भाव कल्प हैं। परन्तु संकल्प अच्छा हो तो विकल्प जरूर भेजते हैं।जीवन वह मार्ग हैं जिसमें सारे तत्व भगवान में समाहित होते हैं। सुभाव से भजन करने से ईश्वर अपने प्रभाव को जीव में उतार देता है और वह अभाव मुक्त हो जाता है। जीवन गतिशील है, हम गति से भाग तो रहे हैं, पर शील को पीछे छोड़कर। इसीलिए आज मानव अधिक दुखी है। उक्त सम्बोधन पंडित अनिल शर्मा के हैं जो उन्होंने ग्राम बुंदेला में गिरधारी श्रीवास के निवास में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में जड़ भरत चरित्र कि व्याख्या करते हुए किया ।

उन्होंने कहा कि जड़ का अर्थ अकाम होता है। भरत जी आर्यावर्त के राजा थे मृग स्वरूप का चिंतन करते हुए उन्हें मृग योनि में जन्म लेना पड़ा। क्योंकि मृत्यु काल का चिंतन हमारी आगामी योनि का निर्धारण करती है।इसलिए ही हमारे समाज मे मृत्यु काल मे गीता का पाठ सुनाया जाता है।जिससे अंत समय मे मरणासन्न का चित्त प्रभु की ओर उन्मुख हो और उसे प्रभु की प्राप्ति हो।
प्रहलाद चरित्र सुनाते हुए उन्होंने कहा कि भक्त का भाव प्रभु को जड़ में भी स्थापित कर प्रकट कर देता है। स्वयं कठिन समय में भी भक्त कि रक्षा हेतु पधारते हैं।भक्त की कोई मर्ज़ी नहीं होती, वह प्रभु की मर्ज़ी पर चलता है।उनकी ही मर्जी मानकर सुख और दुख दोनों समभाव से भोगता है।न सुख में गर्वित होता है और न ही दुख में अविश्वासी।उसका निश्छल और निःस्वार्थ भक्ति भाव दोनों ही परिस्थितियों में अटूट रहता है।हमे भी भगवान का भक्त बनकर उनके प्रति अगाध प्रेम और अटूट श्रद्धा रखनी चाहिये।वे हमारी हर मुश्किल में साथ रहेंगे यह विश्वास रखते हुए अपने धर्म और कर्म का पालन करते रहना चाहिए।

शुक्रवार को कथा श्रवण करने के लिए जांजगीर- चांपा संसद गुहाराम अजगले भी बुंदेला पहुँचे। उन्होंने भागवत भगवान की पूजा अर्चना कर व्यासपीठ में विराजमान महाराज जी से आशीर्वाद प्राप्त किया।महाराज के श्रीमुख से कथा श्रवण करने बड़ी संख्या के लोग और ग्रामवासी उपस्थित थे।